आजकल आत्मा की आवाज की जैसे सेल लगी हुई है । जिसे देखो वो ही आत्मा की आवाज सुनाने को उधर खाए बैठा है । आप न भी सुनना चाहें तो जैसे -क्रेडिट कार्ड, बैंकों के उधरकर्त्ता, मोबाईल कंपनियों के विक्रेता अपनी कोयल-से मध्रु स्वर में आपको अपनी आवाज सुनाने को उधर खाए बैठे होते हैं, वैसे ही आत्मा की आवाज सुनने-सुनाने का ध्धं चल रहा है । कोई भी धर्मिक चैनल खोल लीजिए, स्वयं अपनी आत्मा को सुला चुके ज्ञानीजन आपकी आत्मा को जगाने में लगे रहते हैं । आपकी आत्मा को जगाने में उनका क्या लाभ, प्यारे जिसकी आत्मा मर गई हो वो ध्रम- करम कहां करता है, ध्रम-करम तो जगी आत्मा वाला करता है और ध्रम-करम होगा तभी तो धर्मिक-व्यवसाय पफलेगा और पफूले.

वसंत, तुम कहां हो?

मैं बहुत दिनों से वसंत को ढूंढ रहा था। पता चला  कि इस बार वो 20 जनवरी को दिखा था, पर उसके बाद पता नहीं कहां चला गया। वसंत ने तो मुझसे उधार भी नहीं लिया है कि वो मुझ से मुंह चुराए। मैं किसी क्रेडिट कार्ड बनवाने वाली, उधार देने वाली, बीमा करने वाली या फिर मकान बेचने वाली, कंपनी के काल सेंटर में भी काम भी नहीं करता हूं कि वो मुझसे बचकर चले। वसंत किसी मल्टी नेशनल कंपनी में तो काम करने नहीं लग गया है।

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